निराला की कविताओं में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता में राष्ट्रवाद के अंतर्गत, ‘राष्ट्र’ को केवल एक राजनैतिक इकाई न मानकर, एक सांस्कृतिक औऱ सामाजिक उन्नयन की इकाई माना गया। ‘राष्ट्र’ कोई भौतिकवादी तुच्छ अवधारणा नहीं है, यह एक सनातन धर्म है जो अपने-आप को उत्तरोत्तर सँवारता और पुनः परिभाषित करता रहता है। ‘कुकुरमुत्ता’, ‘चतुरी-चमार’ व ‘कुल्लीभाट’ जैसी रचनाओं में निराला समाजवाद के करीब लगते हैं, तो ‘तुलसी’, ‘शिवाजी का पत्र’ आदि कविताओं में वे राष्ट्रवादी प्रतीत होते हैं। गांधी की तरह ही, निराला को विभिन्न विचारधाराओं ने अपने-अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया।