बनारसी घाट का ज़िद्दी इश्क़
बनारस शहर नहीं, शख्सियत है। अजब है इसका मिज़ाज और गज़ब है इसकी आशिकी। इसके इश्क में भी तिलिस्म है। ऐसा तिलिस्म जिसमें मैं बनारस में और बनारस मुझमें बसता है। बड़े तहजीब और अदब से पेश आता है बनारसी इश्क। जनाब..! सदियों बाद भी आएँगे तो कहकहों से खनकती बनारस की गलियों का इश्क और चाय का अंदाज एक जैसा ही मिलेगा। जानते हैं क्यों? अपनी रुमानियत से नए मिजाज का इश्क मिला देता है बनारसी इश्क। बूझने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे बनारस में गैरों से बेवजह मुलाकातें नहीं होतीं। इस शहर से और इस शहर में इश्क तभी होता है, जब कभी कोई रिश्ता अधूरा होता है। इसकी अनुभूति में ब्रह्म एकमेव एक सत्ता है, बाकी सब मिथ्या…।
– लेखक