JAYATU, JAYATU, LANKESH


जब-जब, जहाँ-जहाँ श्रीराम को वर्णित किया जायेगा, लंकापति रावण का वर्णन तब-तब, वहाँ-वहाँ अवश्यंभावी रूप से किया जायेगा, इस सत्य के विपरीत भी कि इतिहासवेत्ता, विजेता को सर्वशक्तिमान, सर्वगुणसम्पन्न ही घोषित करते आये हैं और विश्व की सम्पूर्ण नकारात्मकता के लिए पराजित को ही दोषी माना जाता है।
लेखक, अभिप्रेरक व शिक्षाविद डॉ अम्बिका प्रसाद गौड़ जी ने अपनी औपन्यासिक कृति ‘जयतु जयतु लंकेश’ उपन्यास के माध्यम से रावण को एक अनोखे रूप में प्रस्तुत किया है।

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