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DNA : PURATATV AUR VAIDIK SANSKRITI
₹280.00
मानव जीवन के विकास की कहानी बहुत ही अद्भुत है क्योंकि इसमें प्रत्यक्ष कथासूत्र नहीं मिलते हैं। जीवविज्ञानी विकासवाद का प्रतिपादन करते हुये वर्तमान मानव स्वरूप को चतुष्पद से द्विपाद के रूप में विकसित पाते है। बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग और विद्वान इस सिद्धान्त से सहमत हैं यद्यपि सामान्य जन प्रश्नवाचक आश्चर्य व्यक्त करता रहता है। मनुष्य स्फुट वाणी के साथ साथ अद्भुत सर्जना-शक्ति का स्वामी है और एक गहन विचारशील प्राणी है। उसकी गतिविधियों एवं सर्जना के कथासूत्र यत्र-तत्र-सर्वत्र उपलब्ध हैं जो अध्येताओं को अलग-अलग विषय प्रस्तुत करते हैं जिसके फलस्वरूप अध्ययन की अनेक विधायें विकसित हुईं है। उन्हीं को आधार बनाकर अपनी मेधा और अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति के बल पर आदरणीय दिव्येंदु त्रिपाठी जी ने ‘डी एन ए : पुरातत्व एवं वैदिक संस्कृति’ पुस्तक तैयार की है।
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