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Fir Laut Aaya Hoo Mere Desh
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हिंदी साहित्य के वरिष्ठतम साहित्यकार और वर्ष 2021 के सरस्वती सम्मान से सम्मानित आचार्य रामदरश मिश्र जी 1964 से दिल्ली में हैं परन्तु कभी गाँव से दूर नहीं रहे। भारत गाँवों का देश है। उनका देश उनके भीतर सदा जीवंत रहा। दिल्ली, अहमदाबाद, नवसारी व गुजरात प्रवास के बावजूद उनके भीतर से गाँव नहीं गया। आज उनके निबंध-संग्रह ‘फिर लौट आया हूँ मेरे देश’ का आवरण प्रस्तुत करते हुए उनकी इसी भाव की कविता की कुछ पंक्तियाँ भी प्रस्तुत हैं – “तुम्हारी उपजाऊ मिट्टी में / तुम्हारे सपूतों ने बो दिये हैं / जहरीलें काँटे और पत्थर / नालायक बेटे बीच-बीच में / हलों की नोक से उगाते हैं सम्बन्ध । मैंने बार-बार केवल जहरीले काँटों और पत्थरों को देखा / उनके बीच-बीच उगते सम्बन्धों को नहीं / और इस मिट्टी को कोसता हुआ उससे भागता रहा / एक अस्वीकार मेें सोकर / दूसरे अस्वीकार में जागता रहा / मैंने क्यों नहीं स्वीकार किया / कि मेरे लिए कोई कपड़े बुनता है / कोई छाँहेें चुनता है / कोई अन्न उपजाता है / कोई काग़ज़ और कलम गढ़ता है / कोई समुद्र में उतरता है / कोई पहाड़ पर चढ़ता है / और मैं / सिर्फ कागज़ गोंजता हूँ / और अस्वीकार करता हूँ / और जब मैं अपने से प्रश्न करता हूँ / तब तब लौट आता हूँ / तुम्हारे पास मेरे देश / आज फिर लौट आया हूँ ।”
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