Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
KAVITA BANTE-BANTE RAH GAYIN JO PANKTIYAN
₹240.00
ओड़िया साहित्य का वितान बहुत बड़ा है। विशेष बात यह कि विशाल सागरतट, सुरम्य प्रकृति और श्री जगन्नाथ की कृपा के साथ उत्कल की माटी और लोक-जीवन की खुशबू समेटे ओड़िया कृतियों को हिंदी जगत ने भी हमेशा हाथों-हाथ लिया है, सराहा है। सुपरिचित व सुधी अनुवादक सुजाता शिवेन के माध्यम से हिंदी पाठक जगत ओड़िया साहित्य से लगातार परिचित होता रहा है, और यह क्रम सतत जारी है। दुर्गा प्रसाद पंडा समकालीन ओड़िया कविता के सशक्त हस्ताक्षरों में से एक हैं। पंडा की कविताएं न केवल यथार्थवादी संसार से लोहा लेती हैं, बल्कि कविता के बने-बनाए खाँचों से भी टकराती हैं। ओड़िया कविता की परंपरा से सत्त्व-तत्त्व ग्रहण करती उनकी कविताऍं असाधारण तरीके से अपनी बात कह जाती हैं। सुजाता शिवेन द्वारा संकलित, संपादित और अनूदित संग्रह ‘कविता बनते-बनते रह गई जो पंक्तियाँ’ की रचनाएं पाठक को चिंतन की अतल गहराइयों में डुबकियाँ लगाने को विवश करने वाली हैं। इनका भावानुवाद इतना सहज है कि इन्हें पढ़ते हुए पाठक अपनी मौन भावनाओं को कभी अपने गहरे अंतर, तो कभी वाह्य कोलाहल और जीवन-जगत की उठापटक से उद्वेलित, संवेदित, तो कभी गहन आत्मीयता में पगा पाता है। पंडा की कविताओं में एक परिपक्व अनुभव जगत समाया हुआ है। इन कविताओं को ओड़िया से हिंदी में सुजाता शिवेन ने अनूदित किया है। भावानुवाद इतना सहज है कि इस में मूल कविता के साथ ही हिंदी कविता की आभा उतर आई है, जिससे ये कविताएँ अधिक संवेद्य और संप्रेष्य हो उठी हैं।
10 in stock
Reviews
There are no reviews yet.