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Mahendar Misir

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महेन्दर मिसिर अद्भुत प्रतिभा के धनी तो थे ही, उनका व्यक्तित्व भी बहुआयामी था। पहलवानी की बदौलत गठा हुआ कसरती वदन, सिल्क का कुर्ता, परमसुख धोती, गले में सोने का चमचमाता हार और मुंह में पान की गिलौरी, जो देखता, देखता ही रह जाता। कद-काठी और सुदर्शन रूप ऐसा कि हजारों की भीड़ में दूर से ही नजर आ जाते थे। जैसी सुंदर काया, उतनी ही सुरीली आवाज और ऊपर से गजब की मर्दानी ठसक । गीत-संगीत के मर्मज्ञ महेन्दर मिसिर आशु कवि थे। महेन्दर मिसिर के कंठ से जब गीत के बोल फूटते थे तो कहा जाता है, सड़क जाम हो जाती थी। उनकी खास विशेषता यह थी कि वह सिर्फ अपने लिखे गीत ही गाते थे। उनके गीतों की मिठास आज भी ज्यों की त्यों है। उनके गीत सुनकर हर कोई भाव-विभोर हो जाता । भोजपुरी के प्रथम उपन्यासकार श्री रामनाथ पाण्डेय जी ने ‘महेन्दर मिसिर’ उपन्यास में पूर्वी के अमर गायक के जीवन का परत-दर-परत मन और आत्मा के साथ खोल कर रख दिया है।

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