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Teesare Pahar Ki Smritiyaan

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‘तीसरे पहर की स्मृतियां’ के सुविख्यात लेखक जाबिर हुसेन जी कहते हैं, “मैंने जिंदगी के अच्छे-बुरे समय को आत्मीय सम्मान के साथ जीने की कोशिश की है। मैंने हमेशा अपने पुरखों के मान-सम्मान को अपने व्यवहार में सब से ज्यादा महत्व दिया है। रिश्तों की नज़दीकियां और दूरियां दोनों मेरी वैचारिक आस्था की मूल बुनियाद रही हैं। मैंने अपने निजी जीवन में नफा-नुक़सान की परवाह किए बिना अपनी इस आदर्शवादी बुनियाद की रक्षा करते रहने का जतन किया है। मैंने अदम्य साहस और उत्साह के साथ जिंदगी की चुनौतियों का सामना करते रहने का अपना कठोर संकल्प पूरा किया है।” दोआबा के यशस्वी संपादक जाबिर हुसेन जी अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे। जेपी तहरीक में बेहद सक्रिय भूमिका निभाई। आपातकाल के दौरान भूमिगत साहित्य का संपादन-प्रकाशन। हिंदी-उर्दू में ढाई दर्जन से ज्यादा किताबें प्रकाशित। विधान परिषद् की पत्रिका साक्ष्य का संपादन। सत्रह वर्षों से हिंदी पत्रिका दोआबा का संपादन। आज उनकी पुस्तक ‘तीसरे पहर की स्मृतियां’ प्रस्तुत किया जा रही है।

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