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Banjar Me Bahar

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युवा ग़ज़लगो श्री विकास सोलंकी जी बेहतरीन साहित्यिक मिज़ाज के होने के साथ ही एक बेहतरीन इनसान भी हैं। उनके भीतर संवेदनाओं को व्यक्त करने की छटपटाहट है। वे आमजन द्वारा भोगे गए यथार्थ को बड़ी साफ़गोई से साहित्य का रूप देते हैं। उनकी ग़ज़लें आमजन की भावनाओं को स्वर देती दिखती हैं। समय के साथ बहते मनुष्य ने जब सिर छुपा कर जीने की आदत डाल ली है तब भी यह युवा ग़ज़लगो सत्य को सत्य कहने से कतराता नहीं हैं। ताल ठोंक कर अपनी बात कहने की क्षमता रखता है। भारतीय ग़ज़ल की परम्परा को अग्रसारित करते हुए श्री विकास सोलंकी जी के संग्रह का ‘बंजर में बहार’ ही नाम उनके दम और जज़्बे को प्रत्यक्ष करने में सक्षम है। विकास सोलंकी जी के इस संग्रह में यथार्थ है तो सौंदर्य भी है, संबंधों का माधुर्य है, कटुता और सत्यता है तो सामाजिक ताने-बाते का चित्र भी है। इनके ग़ज़लों का बेजोड़ शिल्प, शब्दों का सुकोमल चयन और प्रस्तुति की सुन्दर कला से ‘बंजर में बहार’ संग्रह निश्चित तौर पर ग़ज़ल प्रेमियों के हृदय का हार बनेगा।

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